22 जनवरी 2024 का दिन भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया। इस दिन अयोध्या में श्रीराम के भव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का ऐतिहासिक आयोजन हुआ। यह अवसर केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक दृष्टिकोण से भी बेहद खास था। खासकर छत्तीसगढ़ के लिए यह क्षण गौरव और आत्मीयता से भरा हुआ था, क्योंकि यह प्रदेश प्रभु श्रीराम के ननिहाल के रूप में प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़वासियों के लिए राम केवल भगवान नहीं हैं। वे परिवार के एक सदस्य की तरह हैं। यहां उन्हें भांचा राम कहकर पुकारा जाता है। राम की माता कौशल्या का मायका छत्तीसगढ़ है। जो इस प्रदेश के लोगों के लिए गर्व और श्रद्धा का प्रमुख कारण है। यही कारण है कि रामायण और राम से जुड़ी कथाएं छत्तीसगढ़ की लोककला, परंपरा और संस्कृति में गहराई से समाहित हैं।
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर अयोध्या में छत्तीसगढ़ के लोगों की भागीदारी उत्साहजनक और अद्वितीय रही। इस आयोजन में प्रदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु अयोध्या पहुंचे। यह यात्रा केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं थी, बल्कि भावनाओं और ऐतिहासिक जुड़ाव का प्रतीक थी। अयोध्या में रामलला के दर्शन करना और इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनना हर छत्तीसगढ़वासी के लिए एक गर्व का विषय था। छत्तीसगढ़ के लोग इस दिन को केवल अयोध्या में ही नहीं, बल्कि अपने प्रदेश में भी विशेष रूप से मना रहे थे। राज्य के गांवों और शहरों में रामायण पाठ, आरतियां, राम के लोकगीत और कथाएं गाई गईं। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन हुआ। इस दिन को न केवल एक धार्मिक त्योहार के रूप में, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर और राम से जुड़े ऐतिहासिक जुड़ाव को प्रकट करने के रूप में मनाया गया।
छत्तीसगढ़ का प्रभु राम के साथ जुड़ाव केवल पौराणिक कथाओं तक सीमित नहीं है। यह जुड़ाव यहां की संस्कृति, परंपराओं और लोककथाओं में गहराई से रचा-बसा है। कौशल्या माता के मायके के रूप में यह प्रदेश भगवान राम के ननिहाल की पहचान रखता है। रामायण के वनवास प्रसंग में छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानों का उल्लेख मिलता है, जो इसे श्रीराम के जीवन और यात्रा का अभिन्न हिस्सा बनाते हैं। इस ऐतिहासिक दिन पर छत्तीसगढ़ के विभिन्न सांस्कृतिक पहलुओं को भी उभारा गया। यहां के लोकगीतों और रामायण से जुड़े छत्तीसगढ़ी गानों ने सांस्कृतिक उत्सव को और भी समृद्ध किया। छत्तीसगढ़ की लोककला और परंपराओं के माध्यम से भगवान राम के आदर्श और संदेश जन-जन तक पहुंचे। 22 जनवरी 2024 का यह दिन छत्तीसगढ़ के लिए धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से एक अविस्मरणीय क्षण बन गया। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा ने न केवल छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर को उजागर किया, बल्कि प्रदेशवासियों को भगवान राम के आदर्शों और संदेशों को अपनाने की प्रेरणा भी दी।
छत्तीसगढ़वासियों के लिए यह पल सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि अपनी पहचान, आस्था और सांस्कृतिक गौरव को फिर से महसूस करने और प्रकट करने का अवसर भी था। यह दिन हमें स्मरण कराता है कि छत्तीसगढ़ केवल भगवान राम के ननिहाल के रूप में ही नहीं, बल्कि उनके संदेशों और आदर्शों का ध्वजवाहक भी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं)
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