इस बरस का गणतंत्र दिवस में छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत और विशेष रूप से रामनामी समुदाय की झलक देखने को मिलेगी। भारत सरकार की थीम “स्वर्णिम भारत: विरासत और विकास” पर आधारित झांकी में छत्तीसगढ़ की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक धरोहर को प्रस्तुत किया जा रहा है। दरअसल, झांकी का एक महत्वपूर्ण भाग रामनामी समाज की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराओं को समर्पित रहेगा, जो राज्य की संस्कृति में गहरी छाप छोड़ते हैं।
उल्लेखनीय है कि रामनामी समाज एक विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक समुदाय है, जो छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में प्रचलित है। यह समुदाय विशेष रूप से “राम” के निराकार रूप की उपासना करता है। रामनामी समाज का मुख्य विश्वास है कि वे भगवान राम के नाम को हर समय स्मरण करते हैं, और यही उनका जीवन का मुख्य उद्देश्य है।
रामनामी समाज के अनुयायी अपने शरीर और कपड़ों पर “राम-राम” शब्द लिखकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। यह शब्द उनके लिए सिर्फ एक धार्मिक प्रतीक नहीं है, बल्कि जीवन की सच्चाई और आध्यात्मिकता का प्रतीक बन चुका है। समाज के लोग मानते हैं कि जब वे “राम-राम” का जाप करते हैं और इसे अपने शरीर पर लिखते हैं, तो वे भगवान राम की असीम कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
रामनामी समाज की धार्मिक गतिविधियों में प्रमुख रूप से रामचरितमानस का पाठ, भजन, कीर्तन, और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं। इनकी धार्मिक जीवनशैली में भक्ति और तपस्या का गहरा महत्व है। इस समाज के लोग अपने दैनिक जीवन में एक सादगीपूर्ण और अनुशासित जीवन जीने की कोशिश करते हैं, जो उनके विश्वास और धार्मिकता की गहरी समझ को दर्शाता है।
रामनामी समुदाय की पहचान उनके परिधान और शरीर पर अंकित “राम-राम” शब्द से होती है। यह शब्द उनके शरीर के विभिन्न हिस्सों पर, जैसे हाथों, छाती, पीठ और पांवों पर अंकित होते हैं। इसके अलावा, उनके वस्त्रों पर भी “राम-राम” लिखा होता है। यह शब्द एक प्रकार से भगवान राम की भक्ति का प्रतीक बन जाते हैं, और यह उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा हो जाता है। यह परंपरा सदियों पुरानी है और आज भी समुदाय के लोग इसे बड़े गर्व और श्रद्धा के साथ पालन करते हैं।
भारत पर्व 2025 के दौरान झांकी में रामनामी समुदाय का प्रतिनिधित्व अत्यंत महत्वपूर्ण रूप से किया जा रहा है। झांकी के एक हिस्से में स्त्री और पुरुष को दिखाया गया है, जिनके शरीर और कपड़ों पर “राम-राम” शब्द अंकित हैं। ये लोग रामचरितमानस का पाठ करते हुए दिखाई दे रहे हैं। यह दृश्य न केवल धार्मिक श्रद्धा को दर्शाता है, बल्कि समाज की आध्यात्मिकता और जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण को भी प्रकट करता है।
झांकी में इन रामनामी व्यक्तियों के पास घुंघरुओं का प्रदर्शन भी किया गया है, जो भजन और धार्मिक गीतों के लिए उपयोग किए जाते हैं। यह भक्ति संगीत छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है और झांकी में इसे प्रमुख रूप से दर्शाया गया है। घुंघरू की ध्वनि धार्मिक भक्ति को गहराई से महसूस कराती है, और रामनामी समाज की समर्पित भक्ति को जीवंत करती है।
झांकी के मध्य में आदिवासी संस्कृति के पहनावे, आभूषण, कलाकृतियां और कला परंपराओं को भी दर्शाया गया है। इस भाग में बस्तर की लोकजीवन की छवि को जीवित किया गया है, जिसमें तुरही वाद्य यंत्र और सल्फी वृक्ष को प्रमुखता से दिखाया गया है। ये दोनों छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान हैं। सल्फी वृक्ष बस्तर के लोकजीवन में विशेष स्थान रखता है, और तुरही वाद्य यंत्र का उपयोग धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में किया जाता है।
झांकी के पीछे मयूर का अंकन किया गया है, जो लोक जीवन के सौंदर्य और जीवंतता का प्रतीक है। मयूर न केवल छत्तीसगढ़ की संस्कृति का हिस्सा है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति में सौंदर्य, आस्था और शक्ति का प्रतीक भी है। रामनामी समाज छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा है, जो जीवन, प्रकृति और आध्यात्मिकता के गहरे संबंध को दर्शाता है। इस समाज का योगदान न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। भारत पर्व 2025 की झांकी के माध्यम से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विविधता और समृद्धि को राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित किया जा रहा है, और रामनामी समाज की अद्वितीय परंपराओं को गौरवमयी तरीके से सामने लाया जा रहा है। इस आयोजन के जरिए छत्तीसगढ़ की संस्कृति को एक नया मंच मिला है, जहां यह अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान को पूरे देश के सामने प्रस्तुत कर रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं)
वरिष्ठ पत्रकार समरेंद्र शर्मा ने भांचा राम को क्यों बताया छत्तीसगढ़ के हर परिवार का सदस्य