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MSP: कानूनी गारंटी देने राहुल का वादा, 2010 में तो कांग्रेस नीत UPA ने साफ कर दिया था इनकार

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MSP की कानूनी गारंटी सहित कई मांगों के साथ किसान संगठनों ने दिल्ली वार्डर पर जमें हुए हैं। केंद्र सरकार का कहना है कि वह किसानों से बातचीत को राजी है. किसानों की एक प्रमुख मांग स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की है. वे चाहते हैं कि आयोग के सुझाए फॉर्म्युले से MSP तय किया जाए. किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं।

इधर, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वादा किया कि सत्ता में आने पर MSP को कानूनी अधिकार बना देंगे. राहुल ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें जस की तस लागू करने की बात कही. हालांकि, 2010 में जब कांग्रेस नीत UPA सत्ता में थी, तब सरकार ने स्वामीनाथन आयोग के सुझाए फॉर्म्युले से MSP तय करने से इनकार किया था. राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में तत्कालीन कृषि राज्य मंत्री केवी थॉमस ने कहा था कि ऐसा करने से ‘बाजार की सूरत बिगड़ सकती है.’

जानिए 2010 में स्वामीनाथन आयोग की MSP पर क्या बोली थी सरकार?

BJP के प्रकाश जावड़ेकर ने अप्रैल 2010 में तत्कालीन UPA सरकार से राज्यसभा में सवाल पूछा था. जावड़ेकर जानना चाहते थे कि क्‍या सरकार ने किसानों को भुगतान के लिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें स्वीकार कर ली हैं. जवाब में थॉमस ने सदन को बताया:

“प्रोफेसर एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग ने सिफारिश की है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) उत्पादन की भारित औसत लागत से कम से कम होना 50% अधिक चाहिए. हालांकि, यह अनुशंसा सरकार द्वारा स्वीकार नहीं की गई क्योंकि एमएसपी की सिफारिश वस्तुनिष्ठ मानदंडों और प्रासंगिक कारकों को ध्‍यान में रखते हुए कृषि लागत और कीमतें आयोग (CACP) द्वारा की जाती है. इसलिए, लागत पर कम से कम 50% की वृद्धि निर्धारित करने से बाजार विकृत हो सकता है.”

2010 में UPA सरकार का जवाब

MS स्वामीनाथन की अध्यक्षता में ‘राष्ट्रीय किसान आयोग’ का गठन 18 नवंबर 2004 को किया गया था. कमेटी ने आखिरी रिपोर्ट अक्टूबर 2006 में सरकार को सौंपी.

2010 में UPA सरकार का जवाब
msp 2010 में UPA सरकार का जवाब

स्वामीनाथन रिपोर्ट में MSP का क्या फॉर्म्युला है?

सरकार अभी A2+FL फॉर्म्युले की मदद से MSP तय करती है. इसमें बीज, खाद, मजदूरी, सिंचाई जैसे नकदी खर्च के साथ-साथ किसान परिवार के सदस्यों की मेहनत की अनुमानित लागत जोड़ी जाती है. सब जोड़कर खर्च से कम से कम 1.5 गुना ज्यादा MSP तय होता है.

स्‍वामीनाथन आयोग ने रिपोर्ट में MSP के लिए C2+50% फॉर्म्युला दिया. इसके हिसाब से MSP फसल की औसत लागत से 50% ज्यादा होना चाहिए. इसमें इसमें पूंजी की इनपुट लागत और जमीन का किराया शामिल है, जिससे किसानों को 50 फीसदी रिटर्न मिलेगा.

आयोग की सिफारिशें लागू न करने के आरोपों पर कांग्रेस का जवाब

BJP के घेरने पर कांग्रेस की ओर से पवन खेड़ा ने जवाब दिया. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बुधवार को कहा, “मोदी सरकार का कहना है कि ‘स्वामीनाथन आयोग’ को कांग्रेस ने लागू नहीं किया है. लेकिन सच तो ये है कि स्वामीनाथन आयोग में 201 सिफारिशें थीं, जिनमें से यूपीए सरकार ने 175 सिफारिशें लागू कर दी थीं. 26 सिफारिशें बाकी थीं, जिनमें से सबसे अहम MSP से जुड़ी घोषणा कल कांग्रेस अध्यक्ष (मल्लिकार्जुन) खरगे और राहुल गांधी ने की.”

राहुल ने मंगलवार को X (पहले ट्विटर) पर घोषणा की थी कि ‘कांग्रेस ने हर किसान को फसल पर स्वामीनाथन कमीशन के अनुसार MSP की कानूनी गारंटी देने का फैसला लिया है.’ गांधी ने कहा, “अगर इंडिया गठबंधन सत्ता में आता है, तो यह उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी प्रदान करेगा.”

किसानों की अब इन 4 डिमांड को विस्तार से समझिए

आशीष मिश्र टेनी का जमानत मामला- केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्रा लखीमपुर खीरी में 4 किसानों की हत्या के मामले में आरोपी हैं. यह मामला  3 अक्टूबर, 2021 का है.

इस मुकदमे की सुनवाई लखीमपुर के प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश रामेन्द्र कुमार की कोर्ट में चल रही है. आशीष फिलहाल जमानत पर है और किसान संगठनों का कहना है कि सरकार उसकी जमानत रद्द करवाए. वहीं सरकार का कहना है कि आशीष को कानूनन सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है तो सरकार में इसके बीच में कैसे पड़ सकती है?

न्यूनतम समर्थन मूल्य और सरकारी गारंटी- न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों के फसल की कीमत होती है, जिसे सरकार तय करती है. देश की जनता तक पहुंचने वाले अनाज को पहले सरकार किसानों से एमएसपी पर खरीदती है. एमसएपी सिस्टम लागू करने का मुख्य मकसद किसानों को फसल का सही दाम देना है.

किसान संगठनों का कहना है कि सरकार इसे सरकारी गारंटी में लाए और लागू करे. किसान नेताओं के मुताबिक अगर सरकार यह मांग मान लेती है तो फसल की कीमत को लेकर कई समस्याएं हल हो जाएंगी.

फसल लागत से 50 प्रतिशत ज्यादा पर खरीदने की मांग- किसानों की यह मांग काफी अहम है. किसान प्रतिनिधियों का कहना है फसल को अगर लागत के 50 प्रतिशत के हिसाब से खरीदा जाएगा तो इसके किसानों की दुर्दशा सुधर सकती है.

किसान संगठनों का कहना है कि सरकार आमदनी दोगुनी की बात करती है, लेकिन उसे बढ़ाने के लिए कोई बड़ा फैसला नहीं लेती है. आय बढ़ाने के लिए फसल को लागत से 50 प्रतिशत ज्यादा की राशि पर खरीदने की व्यवस्था होनी चाहिए. इसे कृषि क्षेत्र में सी-2 फॉर्मूला भी कहा जाता है.

2021 आंदोलन का मुकदमा वापस लेने की मांग- 2021 में 3 कृषि कानूनों को लेकर किसानों ने प्रदर्शन किया था. उस वक्त हजारों किसानों पर प्रदर्शन का मुकदमा दायर हुआ था, लेकिन अभी भी अधिकांश किसानों पर से केस वापस नहीं लिया गया है.

किसान नेताओं का कहना है कि अधिकांश मुकदमे बीजेपी शासित राज्यों में हैं. ऐसे में केंद्र इससे पल्ला नहीं झाड़ सकता है. केंद्र सरकार अगर पहल करेगी तो मुकदमा एक दिन में ही वापस हो जाएगा.

किसानों को लेकर सरकार का क्या है रूख?

आंदोलन के बीच केंद्र सरकार लगातार किसानों से संपर्क में है. कहा जा रहा है कि जल्द ही किसान संगठन और सरकार के बीच दूसरे दौर की बातचीत हो सकती है.

बुधवार को मीडिया से बात करते हुए कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा, ”किसान संगठनों को यह समझने की जरूरत है कि जल्दबाजी में कोई भी निर्णय नहीं लिया जा सकता है, जिसकी भविष्य में आलोचना हो.”

मुंडा ने आगे कहा, ”हमें सभी पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए और इस पर चर्चा करनी चाहिए. किसानों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि सामान्य जीवन बाधित न हो.” उन्होंने कहा कि केंद्र किसान यूनियनों के साथ रचनात्मक बातचीत जारी रखेगा. हम समाधान खोजने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं.

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