गांव तक पहुंची रेवड़ी की राजनीति : बागबाहरा में सरपंच प्रत्याशी ने किया फ्री बिजली, पानी और तेल देने का वादा!

केंद्र और राज्य से बढ़कर सरपंच प्रत्याशी का घोषणा पत्र

दिलीप शर्मा महासमुंद। अब तक मुफ्त योजनाओं की राजनीति केंद्र और राज्य सरकारों तक सीमित थी। अब इसका असर गांवों तक पहुंच चुका है। छत्तीसगढ़ में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के दौरान प्रत्याशी मतदाताओं को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे कर रहे हैं। इसी कड़ी में बागबाहरा ब्लॉक के ग्राम पंचायत बकमा में एक सरपंच प्रत्याशी ने घोषणा पत्र जारी कर न केवल सत्ताधारी पार्टियों को टक्कर दी, बल्कि अपने वादों में उन्हें भी पीछे छोड़ दिया है। जानिए, गांवों में जनता तक पहुंची रेवड़ी की राजनीति –

फ्री बिजली, पानी और हर घर को 5 लीटर तेल!

बकमा के इस सरपंच प्रत्याशी ने अपने घोषणा पत्र में गांववासियों को बिजली, पानी और बाजार टैक्स में छूट देने का वादा किया है। इतना ही नहीं, प्रत्याशी ने हर घर को हर महीने 5 लीटर फल्ली तेल मुफ्त देने का भी एलान कर दिया है। गांव के लोग पहले ही प्रधानमंत्री आवास योजना, राशन और अन्य मुफ्त सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं, अब इस प्रत्याशी ने उन्हें खाना पकाने के लिए तेल देने की भी जिम्मेदारी उठा ली है।

मुफ्त योजनाएं विकास का रोड़ा, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

ऐसे वादों पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में गंभीर टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि क्या हम राष्ट्र निर्माण में योगदान देने वाले नागरिक बना रहे हैं, या सिर्फ एक नया परजीवी वर्ग तैयार कर रहे हैं। कोर्ट ने चेताया कि चुनावी लाभ के लिए मुफ्त योजनाओं की घोषणा से लोग मेहनत करने से बच रहे हैं, जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है।

फ्रीबीज की राजनीति, वोट पाने का नया हथकंडा

चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि फ्रीबीज (मुफ्त सुविधाएं) अब राजनीति का अहम हथियार बन चुकी हैं। दिल्ली से लेकर छत्तीसगढ़ के गांवों तक, चुनाव जीतने के लिए मुफ्त योजनाओं की घोषणा आम हो गई है। सुप्रीम कोर्ट पहले भी इसे लेकर चिंता जता चुका है, लेकिन राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की घोषणाओं पर कोई असर नहीं दिखता। अब देखना यह होगा कि क्या बकमा के मतदाता इन चुनावी वादों को विकास की नई राह मानते हैं, या फिर इसे सिर्फ एक लोकलुभावन राजनीति का हिस्सा समझते हैं। मतगणना के बाद फैसला साफ हो जाएगा कि मुफ्त योजनाओं की राजनीति कितनी असरदार साबित होती है।

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क्या चुनावों में मुफ्त योजनाओं की घोषणाएं बंद होनी चाहिए? या फिर यह जनता के लिए जरूरी हैं? अपनी राय नीचे कमेंट करें!

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