अहंकार, क्रोध व लोभ के रावण को धैर्य, समर्पण और कर्तव्यरूपी रामबाण से जलाएँ

ज़िंदगीनामा

ज़िंदगीनामा। डॉ. नीरज गजेंद्र

विजयादशमी के अवसर पर हम सभी रावण मारने-जलाने की खुशियां मनाते हैं। बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देते हैं। हम इसे रावण के अंत का प्रतीक पर्व मानते हैं, लेकिन उन तथ्यों को नज़र अंदाज कर जाते हैं, जिसमें हमारे भीतर की बुराइयों के खिलाफ लड़ने का संदेश होता है। विजयदशमी हमें सिखाती है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में जीत सच्चाई और अच्छाई की होती है।

यह पर्व हमें हमारे जीवन में विद्यमान रावण रुपी बुराइयों को पहचानने और उन्हें समाप्त करने का आह्वान करता है। अहंकार, क्रोध, ईर्ष्या, लोभ और अन्य बुराइयां हमारे समाज में विभाजन, संघर्ष और अराजकता का कारण बनती हैं। अगर हम अपने भीतर के इन दोषों को नियंत्रित कर सकें, तो हम एक बेहतर समाज और राष्ट्र के लिए रामराज्य का निर्माण करने में सहायक हो सकते हैं।

आप सब जानते ही हैं कि राम जी का जीवन हमें मर्यादा, संयम, और कर्तव्य की प्रेरणा देता है। उन्होंने अपने जीवन में कर्तव्य को हमेशा सबसे ऊपर रखा। चाहे वह पुत्र के रूप में पिता की आज्ञा का पालन हो। पति के रूप में सीता की खोज में अनथक संघर्ष। राजा के रूप में प्रजा की रक्षा का कर्तव्य। राम हर रूप में एक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। आज हमारे लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि हम अपने जीवन में राम के इन आदर्शों को किस तरह स्वीकार करते हैं।

हमें यह याद रखना चाहिए कि रावण केवल बाहर की बुराई का प्रतीक नहीं, वह हमारे भीतर की नकारात्मकता का भी प्रतिनिधित्व करता है। जब हम अहंकार में आ जाते हैं, जब हम क्रोध या द्वेष से भर जाते हैं, या जब हम अपने निजी स्वार्थ को सब पर हावी कर देते हैं, तब हम अपने अंदर के रावण को बढ़ावा देते हैं। आज का समय हमें एक नई दिशा में ले जाने की प्रेरणा दे रहा है। अगर हम श्री राम के आदर्शों को अपने जीवन में स्थान दें, तो हम केवल अपने व्यक्तिगत जीवन को नहीं, बल्कि पूरे समाज को सही दिशा में ले जा सकते हैं।

हमारे भीतर भी रावण की तरह की बुराइयां, अहंकार, क्रोध, लोभ और द्वेष मौजूद हो सकती हैं, इनसे छुटकारा पाने के लिए हमें राम की तरह शांत, विनम्र और सच्चा बनना होगा। बुराइयों को पहचानकर, उनमें सुधार कर ही हम अपने भीतर के रावण को जला सकते हैं। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी अगली पीढ़ी को एक ऐसा समाज मिले, जहां वे नैतिकता, सत्य और धर्म के मूल्यों को समझें और उन पर अमल करें। राम का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चाई, नैतिकता और न्याय का पालन करना ही मानवता की सेवा है।

आज के समाज में जहां भ्रष्टाचार, द्वेष और असत्य हावी हो रहा है, राम के आदर्श हमारे लिए एक मार्गदर्शक बन सकते हैं। राम ने अपने जीवन में सदैव धैर्य, समर्पण, और कर्तव्य का पालन किया। इस विजयदशमी हम एक ऐसे समाज के निर्माण का संकल्प लें और खोजें कि रावण की बुराइयां हमारे भीतर जगह तो नहीं बना रही है, और यह महसूस होता है तो राम के आदर्शों का पालन करें, क्योंकि यह पर्व केवल बुराई के अंत का ही नहीं, बल्कि अच्छाई की शुरुआत का भी प्रतीक है। आइए, सत्य, धर्म और मानवता के पथ पर चलने का संकल्प लें। अपने जीवन में राम जैसे आदर्शों को अपनाएं। विजयादशमी की मंगलकामनाएं।

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