सरकार की युक्तियुक्तकरण नीति बेरोजगारों के हक पर कुठाराघात : विनोद चंद्राकर

विनोद

* युक्तियुक्तकरण नीति से स्कूलों का बिगड़ेगा सेटअप, गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा से बच्चे होंगे वंचित

महासमुंद। पूर्व संसदीय सचिव व महासमुंद के पूर्व विधायक विनोद सेवनलाल चंद्राकर ने कहा कि 33 हजार शिक्षकों की भर्ती करने का वादा भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश के युवाओं से किया था। प्रदेश के युवा शिक्षक बनने की उम्मीद लगाए बैठे हैं, आैर इधर सरकार ने शिक्षक भर्ती से बचने तथा जो शिक्षक कार्यरत हैं, उन्हें पदोन्नति से वंचित करने रातो-रात प्रदेश के 4077 स्कूलों के युक्तियुक्तकरण का आदेश जारी कर दिया है। सरकार के इस निर्णय से 33 हजार शिक्षकों की भर्ती भी ठंडे बस्ते में चला गया है। यही, नहीं भााजपा ने पूरी प्लानिंग कर इस कार्य को अंजाम दिया है, युवाओं के विरोध को दबाने 7 अगस्त को हाईकोर्ट में कैविएट भी दाखिल कर दिया गया। बैक डेट पर 2 अगस्त को युक्तियुक्तकरण का आदेश जारी करने से ही भाजपा की मंशा जाहिर होती है। इससे शिक्षा विभाग का सेटअप छिन्न-भिन्न होगा। वहीं, ग्रामीण इलाकों के बच्चे गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा से वंचित होंगे।

श्री चंद्राकर ने कहा कि युक्तियुक्तकरण से शिक्षा की गुणवत्ता काफी हद तक प्रभावित होगी। सिर्फ एक प्रधान पाठक और एक सहायक शिक्षक के भरोसे नौनिहाल छात्रों का भविष्य कैसे संवरेगा। एक तरफ शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने की बात करते हैं, दूसरी ओर इसके विपरीत अव्यवहारिक आदेश सरकार थाेप रहे हैं। इस आदेश के विरोध में यदि न्याय के लिए कोई न्यायालय की शरण में जाए तो उसके पहले ही हाईकोर्ट में सरकार की ओर से केविएट दायर कर दी गई है।

श्री चंद्राकर ने कहा कि पदोन्नति एवं नई नियुक्ति से बचने युक्तियुक्तकरण के नाम पर 7 अगस्त को हाईकोर्ट में केविएट लगा कर पुराने तिथि 2 अगस्त को युक्तियुक्तकरण करने का आदेश जारी करने के पीछे शासन की मंशा योजनाबद्ध ढंग से पुराने शिक्षकों को पदोन्नति देने से बचने तथा हजारों की तादात में बीएड एवं डीएड प्रशिक्षित बेरोजगारों को नौकरी से वंचित करने की साजिश है। सरकार नई भर्तियों से कतरा रही है जो राज्य के योग्य बेरोजगार युवाओं के हक पर कुठाराघात है। शासन द्वारा जारी नीति में अनेक विसंगतियां हैं।

स्कूल शिक्षा के स्वीकृत सेटअप को ताक पर रखकर यह नीति बनाई गई है। यह सेटअप राजपत्र का भी खुला उलंघन है जो घोर निंदनीय व अमर्यादित है। यह सरकार स्कूलों की गुणवत्ता समाप्त कर निजी शिक्षण संस्थाओं को बढ़ावा दे रही है। जिससे बड़े व्यापारिक घरानों को लाभ पहुंचाया जा सकें। यह निजीकरण की दिशा में बढ़ाया गया अलोकतान्त्रिक कदम है। जिससे स्कूल के छात्र-छात्राओं की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित होगी और नौनिहाल बच्चों का भविष्य अधर में लटक जायेगा। शासन को स्वीकृत सेटअप के अनुसार स्कूल शिक्षा विभाग की गतिविधि को सुचारु रूप से गतिशील करना चाहिए।

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