जब-जब भारतीय संस्कृति के उजास की बात होती है, नवरात्रि और राम नवमी की ज्योति उसमें सबसे प्रखर दिखाई देती है। ये पर्व धार्मिक अनुष्ठान, आध्यात्मिक उन्नयन और वैज्ञानिक चेतना का सेतु है। इन तीनों से मिलकर बने पथ पर चलकर व्यक्ति अपने भीतर के अंधकार को दूर कर सकता है। अपने परिवार और समाज को प्रकाशमान कर सकता है। पुराण और शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ ही नौ रातों की वह यात्रा है, जो व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है। ये नौ दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना के दिन हैं। इसका उद्देश्य मूर्ति के समक्ष ज्योत के रूप में अपने भीतर की दुर्बलताओं को जला देना है।
इस पर्व का एक गहरा वैज्ञानिक पक्ष भी है। जब ऋतुओं में बदलाव के समय मौसम और ऊर्जा चक्रों में परिवर्तन होता है। तब शरीर और मन दोनों को संतुलित करने के लिए व्रत, ध्यान, जप और सात्विक जीवन शैली की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि नवरात्रि में उपवास, जागरण, योग और जप ये सब परंपरा का हिस्सा बनती हैं। यह एक आत्मिक अनुशासन है, जो व्यक्ति को संयम और साधना की ओर ले जाता है। यही साधना, सात्विकता धीरे-धीरे जीवन में स्थिरता, ऊर्जा और विवेक का संचार करती है।
नवरात्रि के समापन पर आती है राम नवमी। यह हमें एक ऐसी विभूति की याद दिलाती है जिसने इस धरा पर धर्म को साक्षात जीकर दिखाया। भगवान श्रीराम, एक ऐतिहासिक चरित्र के साथ भारतीय मानस की चेतना हैं। वे वह आदर्श हैं, जिनकी ओर देखकर पीढ़ियां राह खोजती हैं। श्रीराम का जन्म उस कालखंड में हुआ जब अन्याय, अहंकार और अराजकता ने धर्म की नींव हिला दी थी। ऐसे समय में एक साधारण पुत्र, एक वीतराग राजा, एक तपस्वी योद्धा के रूप में राम ने यह दिखाया कि मर्यादा और करुणा के साथ भी नेतृत्व संभव है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि जीवन की सफलता केवल अधिकार में नहीं, कर्तव्य की सिद्धि में है। परिवार, समाज, राष्ट्र जैसे हर संबंध में उनका व्यवहार एक दीपक की तरह मार्गदर्शन करता है।
भारत की सनातन परंपरा में ये पर्व जीवन को नई दिशा देने वाले होते हैं। आज जीवन की गति तेज है। रिश्ते तनावग्रस्त हैं। मनुष्य भीतर से खाली महसूस करता है। तब ये पर्व हमें थामकर सोचने का अवसर देते हैं। सिर्फ पूजा-पाठ, भाव-भक्ति और अनुष्ठान से काम नहीं चलेगा, हमें मां के नौ स्वरूपों को अपने आचरण में स्थान देना होगा। प्रभु श्रीराम के आचरण को व्यवहार में लाना होगा, तभी हम सनातन को अंगीकार कर सकेंगे। कोई नवरात्रि और रामनवमी की साधना को भाव से अपनाता है। तो वह सिर्फ धर्म का पालन नहीं करता, वह एक सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण भी करता है। संक्षेप में कहें तो, सनातन परंपरा का आचरण यदि भावना और समझदारी से किया जाए, तो यह केवल आत्मा का नहीं, पूरे जीवन का कल्याण करती है।
जय माता दी… जय जय श्री राम
सृष्टि को संतुलित रखने वाली सनातन धर्म की शक्ति का नाम है दुर्गा : ब्रह्मचारी गुरुदेव