सोचिए, एक गांव में रहने वाला गरीब किसान, जो अपने बच्चे को पढ़ा–लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहता है। सरकारी स्कूल में भरोसा करके बच्चे को दाखिला दिलाता है। लेकिन वहां पढ़ाई की जगह सिर्फ किताबें और मिड–डे मील मिलता है। बच्चे की पढ़ाई शिक्षक की कमी में अधूरी रह जाती है। एक मजदूर, जो हर दिन मेहनत करके अपनी रोटी कमाता है। बीमार पड़ता है। सरकारी अस्पताल जाता है। लेकिन डॉक्टर बीमारी का इलाज करने के बजाय उसे शहर के बड़े अस्पताल में रेफर कर देता है। इन छोटे–छोटे अनुभवों में छिपी असफलताएं सरकारी नीतियों की बड़ी विफलताओं की ओर इशारा करती हैं। छत्तीसगढ़ में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं की स्थिति ऐसी ही है। सरकार की योजनाएं कागजों पर सुनहरी दिखती हैं। जमीनी हकीकत इसके विपरीत है। नीतियों के इस खोखलेपन ने लोगों को स्वावलंबी बनाने के बजाय उन्हें मदद की आस में खड़ा कर दिया है। आज की वास्तविकता यह है कि सरकारी वादे जरूरतमंदों के लिए सुविधाएं नहीं, बल्कि केवल आशाएं लेकर आते हैं। आइए, गहराई से जानें कि कैसे शिक्षा और स्वास्थ्य आम लोगों के जीवन में क्या बदलाव ला रही हैं।
शिक्षा, स्वास्थ्य, मेहनत से अर्जित जीविका और अपने सिर पर छत—ये सभी जीवन को बेहतर बनाने के प्रमुख स्तंभ हैं। परंतु जब इन मूलभूत आवश्यकताओं को सरकारी योजनाओं की जकड़न या अव्यवस्था प्रभावित करने लगती है। तो समाज के विकास की रफ्तार धीमी हो जाती है। जहां सरकारी नीतियां सुविधाएं तो प्रदान कर रही हैं। परंतु उनकी गुणवत्ता और स्थिरता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। शिक्षा को दुनिया का सबसे बड़ा दान माना जाता है। सरकार का दावा है कि वह मुफ्त शिक्षा उपलब्ध करा रही है, लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है। मुफ्त शिक्षा के नाम पर बच्चों को पाठ्य पुस्तकें, स्टेशनरी, स्कूल यूनिफॉर्म और यहां तक कि मिड–डे मील जैसी सुविधाएं तो दी जा रही हैं, लेकिन शिक्षकों की भारी कमी के कारण शिक्षा का असली उद्देश्य पीछे छूट गया है।
ग्रामीण इलाकों में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पा रही है। कई स्कूलों में सिर्फ एक या दो शिक्षक ही पूरी कक्षाओं की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। पढ़ाई का स्तर लगातार गिर रहा है। शिक्षकों की यह कमी न केवल छात्रों के भविष्य पर असर डाल रही है। शिक्षा प्रणाली की बुनियाद को भी कमजोर कर रही है। सरकार का ध्यान अगर सिर्फ सुविधाएं देने तक सीमित रहेगा और शिक्षा के असल मापदंड (जैसे योग्य शिक्षकों की संख्या और गुणवत्ता) पर जोर नहीं दिया जाएगा, तो यह दावे खोखले ही साबित होंगे। स्वास्थ्य एक ऐसा क्षेत्र है, जो सीधे तौर पर व्यक्ति की जीवन–गुणवत्ता को प्रभावित करता है। कार्ड के जरिए इलाज की कुछ राशि माफ है, लेकिन डॉक्टरों की कमी गंभीर समस्या है। जिन डॉक्टरों की नियुक्ति की गई है, वे अधिकांशत: रेफर मैन बनकर रह गए हैं। इसका मतलब है कि वे मरीजों का इलाज करने के बजाय उन्हें बड़े अस्पतालों में रेफर कर देते हैं। इसके पीछे का बड़ा कारण है उनके पास संसाधन और सुविधाओं की कमी। ग्रामीण इलाकों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बुनियादी सुविधाएं, जैसे दवाइयां, उपकरण और तकनीकी संसाधन, पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं। छोटी–छोटी बीमारियों के इलाज के लिए लोगों को शहरों के बड़े अस्पतालों में जाना पड़ता है। इससे न केवल समय की बर्बादी होती है, बल्कि आर्थिक बोझ भी बढ़ता है।
सरकारी योजनाओं का उद्देश्य जनता को आत्मनिर्भर बनाना होता है, लेकिन ये योजनाएं लोगों को उम्मीदों के दायरे में सीमित कर रही हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में केवल सुविधाएं देने से काम नहीं चलेगा। इन क्षेत्रों में गुणात्मक सुधार लाने के लिए सरकार को शिक्षकों की संख्या और उनकी योग्यता पर ध्यान देना चाहिए। ग्रामीण इलाकों में शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए विशेष भर्ती अभियान चलाने की आवश्यकता है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए। डॉक्टरों के लिए प्रशिक्षण और प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की जानी चाहिए। सरकारी योजनाओं को इस तरह से डिजाइन किया जाना चाहिए। जिससे लोग आत्मनिर्भर बनें। उदाहरण के लिए रोजगार योजनाओं को केवल मजदूरी तक सीमित रखने के बजाय कौशल विकास से जोड़ा जाना चाहिए।
सरकारी योजनाओं और नीतियों ने लोगों को उम्मीदों की जंजीरों में बांध दिया है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में जो सुधार होने चाहिए थे, वे कहीं न कहीं खो गए हैं। अगर इन क्षेत्रों में बुनियादी और स्थायी सुधार किए जाएं, तो न केवल देश और राज्य का विकास होगा, बल्कि लोगों की जिंदगी भी बेहतर होगी। सरकारी योजनाएं तभी सफल मानी जाएंगी, जब वे लोगों को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाएंगी, न कि उन पर निर्भर रहने वाला। उम्मीद है कि आने वाले समय में सरकार इन मुद्दों पर ध्यान देगी और योजनाओं को वास्तविकता के करीब लाएगी।
(लेखक, सामाजिक व राजनीतिक रणनीतियों के विश्लेषक हैं)
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