ज़िंदगीनामा: आत्मनिर्भर, कृतज्ञ और समाज के प्रति संवेदनशील बनने का कीजिए श्रीगणेश

ज़िंदगीनामा

ज़िंदगीनामा: सामाजिक-राजनीतिक रणनीतियों की पत्रकारिता पर डाॅक्टोरेट की उपाधि से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार डॉ. नीरज गजेंद्र की नज़र से देखिए धर्म, आध्यात्म और आधुनाकिता के मेल से बदल रहे समाज की उजली तस्वीर… उनके साप्ताहिक स्तंभ ‘ज़िंदगीनामा’ में। पहली कड़ी में पढ़िए ‘आत्मनिर्भर, कृतज्ञ और समाज के प्रति संवेदनशील बनने का कीजिए श्रीगणेश’।

संसार को चलाने वाली तीन देवियां- शक्ति, लक्ष्मी और सरस्वती का एक रूप ‘श्री गणेश जी’ हैं। अपनी ज़िंदगी में हर कोई शक्ति, लक्ष्मी और सरस्वती की मौजूदगी का सुख चाहता है। शक्ति- धैर्यपूर्ण मनोबल, लक्ष्मी- आर्थिक समृद्धि और सरस्वती- बुद्धि ज्ञान के प्रतीक हैं। तीनों ही देवियों से प्राप्त होने वाले सुख के लिए जब भी हम किसी कार्य की शुरुआत करते हैं, तो उसे ‘श्रीगणेश’ से संबोधित करते हैं। भारतीय संस्कृति में ‘गणेश जी’ की पूजा का विशेष महत्व है, उन्हें “विघ्नहर्ता’ और “बुद्धि के देवता’ कहा गया है। श्री गणेश, हर व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, ज्ञान, समृद्धि और शांति का प्रतीक हैं।

जिंदगीनामा, के जरिए हम इस पवित्र और अनंत पूजा की चतुदर्शी को आने वाले विघ्नों का सामना करने की शक्ति हासिल करेंगे। इतनी ही नहीं, कुछ नया करने के संकल्प का श्रीगणेश भी कर रहे हैं। ज़िंदगीनामा में हम उन सब पहलुओं पर चर्चा की कोशिश करेंगे। गणेश जी की चार भुजा (शक्ति, विवेक, समृद्धि और जिम्मेदारी) हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता का संकेत देते हैं। उनके विशाल मस्तक से हम धैर्य और ध्यान का संदेश प्राप्त कर जान पाते हैं कि ज्ञान के बिना प्रगति अधूरी है। हमें निरंतर सीखने की प्रवृत्ति को बनाए रखनी चाहिए। उनका वाहन मूषक यह दर्शाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, हमें छोटे-बड़े सभी संसाधनों का सम्मान करना चाहिए। उसका सदुपयोग करना चाहिए। गणेश जी सिखाते हैं कि सफलता केवल बुद्धिमानी से नहीं बल्कि धैर्यता, विनम्रता और समर्पण से हासिल की जा सकती है।

अक्सर यह जिज्ञासा बनी रहती है कि आखिर गणेश जी की पूजा के ठीक दूसरे दिन से ही हमारे पितर क्यों आते हैं। श्री गणेश जी की पूजा के बाद पितरों की पूजा का विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। गणेश जी से सकारात्मकता और समृद्धि मिलने के बाद बाद पितरों की पूजा का तात्पर्य है कि हम अपने उन पूर्वजों को सम्मान दें, जिनकी वजह से हमारा अस्तित्व है। पूर्वजों को याद कर उनका श्राद्ध करना हमारी कृतज्ञता का प्रतीक है। यह इस बात का संकेत है कि हमारी सफलता, ज्ञान और वर्तमान स्थिति पूर्वजों के आशीर्वाद व मार्गदर्शन से संभव हुई है। गणेश जी हमें भविष्य की ओर बढ़ने की प्रेरणा और पितर उन परंपराओं का सम्मान करने की सीख देता है, जिनकी नींव पर हमारी आज की पहचान टिकी है।

गणेश जी से हम सीख पाते हैं कि हर काम की शुरुआत सही दृष्टिकोण और मानसिकता के साथ हो। वहीं, पितरों के स्मरण से हमें अहसास होता है कि हमारे वर्तमान की मजबूती पूर्वजों की पारदर्शिता और कड़ी मेहनत पर आधारित है। गणेश जी और पितर देवता जीवन में संतुलन, अनुशासन और आस्था को बनाए रखने का संदेश देते हैं। आइए हम आत्मनिर्भर, कृतज्ञ और समाज के प्रति संवेदनशील बनें।

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