Digital arrest: एक समय था जब हमारी सुबह अखबार की सुगंध और चाय की चुस्की के साथ होती थी। बहुत पीछे नहीं, दस साल पहले की जीवनशैली को याद कीजिए। सुबह की ताजगी को आप अपनी दिनचर्या का हिस्सा मानते रहे हैं। तब आपकी दिनचर्या में सादगी और वास्तविकता थी। घंटों पार्क में टहलते थे। बच्चों के खेल-कूद की आवाजें मोहल्लों को जीवंत बनाती थीं। बच्चे स्कूल के बस्ते के साथ पार्क में खेलने के लिए उत्साहित होते थे। महिलाएं रसोई की बातों, हंसी-ठिठोली और एक-दूसरे के साथ बिताए समय को सबसे मूल्यवान मानते थे।
त्योहारों पर घरों में तैयारियां और गिले-शिकवे भुलाकर रिश्तेदारों से मिलना प्राथमिकता होती थी। मनोरंजन का मतलब टीवी पर साथ बैठकर फिल्म देखना या वाद्ययंत्रों की धुनों पर गाना गाना था। टेलीफोन था, लेकिन वह केवल कॉल और संदेशों तक सीमित था। लेकिन आज, तकनीक ने हमारी दिनचर्या का हर पहलू बदल दिया है। सुबह की पहली किरण के साथ हाथ में मोबाइल आता है। सोशियल प्लेटफार्म के नोटिफिकेशन के बीच चाय कब ठंडी हो जाती है, पता ही नहीं चलता। यही बदलाव डिजिटल अरेस्ट (Digital arrest) है, और हमें धीरे-धीरे अपनी गिरफ्त में ले रहा है।
आज की डिजिटल दुनिया (Digital arrest) हमारी जिंदगी को स्क्रीन पर सिमटने मजबूर कर रही है। सोशल साइट्स और डिजिटल उपकरणों ने हमारे जीवन पर कब्जा कर लिया है। सुबह-शाम का समय स्क्रीन के साथ गुजरता है। रील्स और चैट्स वास्तविक बातचीत का स्थान ले चुके हैं। बच्चों का खेल अब बाहर की मिट्टी के बजाय मोबाइल स्क्रीन पर ऑनलाइन गेम्स तक सीमित हो गया है। परिवार के साथ डिनर करते समय भी फोन का उपयोग जारी रहता है। रिश्तों की गर्मजोशी ठंडी पड़ रही है। इसमें कोई शक नहीं कि सोशल साइट्स ने हमें कई फायदे दिए हैं। दूर-दराज के रिश्तों को जोड़ने में पुल का काम किया है।
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सूचना और ज्ञान तक पहुंचने की सुविधा पहले से अधिक आसान हो गई है। व्यवसाय और रोजगार के नए अवसर खुले हैं, लेकिन इन फायदों के पीछे एक बड़ी कीमत भी छुपी है, वास्तविक जीवन के अनुभवों से दूरी बढ़ गई है। लगातार स्क्रीन पर समय बिताने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। सामाजिक जुड़ाव की जगह एकाकीपन ने ले ली है। आपने महसूस किया होगा कि जब आप मोबाइल से दूर होते हैं, तो बेचैनी आपके करीब होती है। यह बेचैनी सोशल मीडिया के नोटिफिकेशन, किसी संदेश का इंतजार या स्क्रीन पर लौटने की चाह से जुड़ी होती है। यह अनदेखा बंधन हमें हमारी मर्जी के बिना बांध लेता है, और इसी को डिजिटल अरेस्ट कहते हैं।
अनुभव कीजिए कि कहीं आपमें भी तनाव, चिंता और अवसाद की प्रवृत्ति तो नहीं बढ़ रही है। लगातार स्क्रीन पर समय बिताने से मस्तिष्क पर दबाव बढ़ता है, जिससे एकाग्रता में कमी आती है। लंबे समय तक यह स्थिति मानसिक अस्थिरता को जन्म देती है। डाक्टर बताते हैं कि मोबाइल या कंप्यूटर के लंबे उपयोग से आंखों में जलन, सिरदर्द और गर्दन की समस्याएं आम हो गई हैं। लगातार बैठे रहने से मोटापा, मधुमेह और अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ता है। डिजिटल उपकरणों के अत्यधिक उपयोग से मस्तिष्क को खाली समय नहीं मिलता, जिससे नए विचारों का जन्म कठिन हो जाता है। व्यक्ति अपनी सृजनात्मकता और स्वतंत्र सोच से दूर हो जाता है।
अब, सवाल उठता है कि आखिर इससे कैसे बचें। जैसे नशे के उत्पादों में बड़े अक्षरों में लिखा होता है कि यह हानिकारक है। सोशल साइट्स भी सचेत कर रहे हैं कि डिजिटल अरेस्ट से कैसे बचें। साइट्स में स्पष्ट संदेश है कि समय-समय पर डिजिटल उपकरणों से दूरी बनाएं। दिन के कुछ घंटे या सप्ताह में एक दिन स्क्रीन से दूर रहें। इस समय में किताबें पढ़ें, प्रकृति के पास जाएं या शौक पूरे करें। सोशल मीडिया के लिए समय सीमा तय करें। स्क्रीन टाइम जैसी सुविधाओं का उपयोग करें, जिससे पता चल सके कि आप किस ऐप पर कितना समय बिता रहे हैं।
परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं। उनके साथ बातचीत करें और आउटडोर गतिविधियों में शामिल हों। यह मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। संगीत, चित्रकारी, बागवानी जैसे शौक अपनाएं। यह न केवल मनोरंजन का साधन बनते हैं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। बच्चों को डिजिटल उपकरणों के संतुलित उपयोग का महत्व सिखाएं। उन्हें शारीरिक गतिविधियों और खेलकूद में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें।
डिजिटल अरेस्ट एक गंभीर समस्या है, लेकिन इसे हल करना संभव है। हमें यह समझना होगा कि डिजिटल सुविधाओं का संतुलित उपयोग ही इसका समाधान है। अगली बार जब आपका मोबाइल आपको बार-बार आकर्षित करे, तो थोड़ा रुकें, सोचें और खुद से पूछें– क्या मैं इस डिजिटल अरेस्ट (Digital arrest) का शिकार हो रहा हूं। समय रहते कदम उठाएं और खुद को इस अनचाहे बंधन से मुक्त करें। स्वस्थ, सुखद और संतुलित जीवन जीने के लिए डिजिटल उपकरणों का गुलाम बनने से बचें।
आज का युग तकनीक का है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम अपनी वास्तविकता को खो दें। दस साल पहले की जीवनशैली हमें सिखाती है कि संतुलन ही सुखद जीवन की कुंजी है। डिजिटल उपकरणों का उपयोग करें, लेकिन उनके गुलाम न बनें। रिश्तों, प्रकृति और स्वयं के साथ जुड़कर ही हम इस डिजिटल अरेस्ट से मुक्त हो सकते हैं। समय पर उठाए गए सही कदम ही आपको एक संतुलित और खुशहाल जीवन की ओर ले जा सकते हैं।