अफवाहें, ऐसी बातें जिनके सिर-पैर नहीं होते हैं। बावजूद इसके, ये पूरे समाज में आग की तरह फैल जाती हैं। अफवाहों की सबसे खतरनाक बात यह है कि इनके सही-गलत का पता तब चलता है, जब भरपूर नुकसान हो चुका होता है। बुधवार को महाराष्ट्र के जलगांव के पास पुष्पक एक्सप्रेस की घटना इसका सबसे ताजा उदाहरण है। ट्रेन में बिजली की स्वाभाविक चिंगारी को आग मान लिया गया। घबराए यात्री ट्रेन से कूदने लगे और दूसरी पटरी पर आ रही ट्रेन की चपेट में आ गए। इस अफवाह ने ऐसा हाहाकार मचाया कि 11 निर्दोष लोग अपनी जान गंवा बैठे। और 40 अन्य घायल हो गए।
अफवाहें समाज के लिए एक अदृश्य खतरा हैं। पुष्पक एक्सप्रेस की त्रासदी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अफवाहें जानलेवा हैं। हमें सतर्क रहना होगा और ऐसी किसी भी सूचना को फैलाने से पहले उसकी सच्चाई की जांच करनी होगी। इतिहास गवाह है कि अफवाहों ने कितने बड़े-बड़े हादसे करवाए हैं। चाहे वह सांप्रदायिक दंगे हों, बच्चा चोरी की घटनाएं हों, या जलगांव जैसी दुखद घटनाएं—हर बार यही साबित हुआ है कि अफवाहें न केवल विनाशकारी हैं, बल्कि समाज के लिए घातक भी हैं। सचेत रहना और दूसरों को सचेत करना ही इस समस्या का सबसे प्रभावी समाधान है। अफवाहों के खिलाफ हमारी जागरूकता और सतर्कता ही समाज को इन खतरों से बचा सकती है।
अफवाहों के चलते कई ऐसी त्रासदियां हुई हैं, जिन्होंने समाज को झकझोर कर रख दिया। 2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में फैली अफवाहों के कारण सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान गई और हजारों बेघर हो गए। 2018 में देशभर में बच्चा चोरी की अफवाहों के चलते कई राज्यों में निर्दोष लोगों को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली और अन्य स्थानों पर सिख समुदाय के खिलाफ अफवाहों ने भयानक नरसंहार को जन्म दिया। इन घटनाओं ने साबित किया कि अफवाहें समाज को न केवल विभाजित कर सकती हैं, बल्कि जीवन और संपत्ति का भारी नुकसान भी कर सकती हैं।
अफवाहें अक्सर अज्ञानता, भय और अविश्वास की जमीन पर पनपती हैं। किसी घटना या परिस्थिति की पूरी जानकारी न होने पर लोग अपने अंदाजे से बातें गढ़ लेते हैं। ये बातें बिना पुष्टि किए दूसरों तक पहुंचाई जाती हैं। जैसे ही कोई इस पर विश्वास करता है, यह खबर जंगल में आग की तरह फैलने लगती है। आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया ने अफवाहों को और अधिक खतरनाक बना दिया है। किसी भी झूठी खबर को कुछ ही मिनटों में लाखों लोग देख और साझा कर सकते हैं। पुष्पक एक्सप्रेस की घटना इसका ज्वलंत उदाहरण है, जहां एक छोटी-सी चिंगारी को आग मान लिया गया, और इस गलतफहमी ने लोगों को अपनी जान गंवाने पर मजबूर कर दिया।
अफवाहें समाज के हर पहलू को प्रभावित कर सकती हैं। यह भय, भ्रम और अनिश्चितता का माहौल पैदा करती हैं। अफवाहें सीधे-सीधे लोगों की जान ले सकती हैं। जलगांव की घटना या बच्चा चोरी की अफवाहों से हुई लिंचिंग इसकी स्पष्ट मिसाल हैं। अफवाहों के कारण व्यापार और उद्योग पर भी बुरा असर पड़ता है। अफवाहें अक्सर सामुदायिक हिंसा और सामाजिक अस्थिरता को जन्म देती हैं। अफवाहें लोगों के बीच अविश्वास पैदा करती हैं। अफवाहों से बचाव कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। इसके लिए सामूहिक और व्यक्तिगत स्तर पर सतर्कता जरूरी है। किसी भी जानकारी को बिना जांचे-परखे दूसरों तक न पहुंचाएं। सूचना को साझा करने से पहले उसकी सत्यता की पुष्टि करें। सोशल मीडिया पर कोई भी खबर शेयर करने से पहले सोचें कि यह कितनी सटीक है।
किसी भी अप्रत्याशित स्थिति में घबराने की बजाय शांत रहकर सही निर्णय लेने की आवश्यकता होती है। अब कोशिश होनी चाहिए कि स्कूलों, कॉलेजों और सामाजिक संस्थाओं में अफवाहों के खतरों के प्रति जागरूकता अभियान चलाए जाएं। अफवाहों की रोकथाम के लिए सरकार को भी सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। अफवाह फैलाने वालों पर ठोस कानूनी कार्रवाई का प्रावधान भी किया जाना चाहिए।
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