इंडिया गठबंधन ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ उन्हें पद से हटाने के लिए प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया है. यह संसदीय इतिहास में पहला ऐसा कदम है, जब उपराष्ट्रपति के खिलाफ यह प्रस्ताव लाया गया है. विपक्ष के पास इस प्रस्ताव को पारित कराने के लिए राज्यसभा और लोकसभा दोनों जगहों पर जरूरी संख्या नहीं है. फिर भी वह प्रस्ताव पर अड़ा हुआ है.
लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह है कि विपक्ष ऐसा नौटंकी क्यों कर रहा है? जब उसके पास संख्या बल नहीं है, उसके शीर्ष नेताओं ने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, संसद सत्र में केवल 10 दिन बचे हैं… ऐसे में विपक्ष ऐसा क्यों कर रहा है. जानकारों का दावा है कि विपक्ष का यह कदम प्रतीकात्मक है. लेकिन, प्रतीकात्मक विरोध के लिए ऐसा करना कितना उचित है?
उपसभापति के खिलाफ लाया गया था प्रस्ताव
वर्ष 2020 में विपक्ष ने राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिश की थी, लेकिन उस समय सभापति एम. वेंकैया नायडू ने इसे खारिज कर दिया था. नायडू ने यह कहा था कि प्रस्ताव उचित प्रारूप में नहीं था और इसके लिए 14 दिन का नोटिस भी नहीं दिया गया था. संविधान के अनुच्छेद 67(बी) के तहत, उपराष्ट्रपति को उनके पद से हटाने के लिए राज्यसभा और लोकसभा में बहुमत से प्रस्ताव पारित होना चाहिए.
इसके लिए कम से कम 14 दिन पहले इस प्रस्ताव का नोटिस देना आवश्यक होता है. इस प्रस्ताव के बारे में जानकारी देते हुए विपक्षी इंडिया गठबंधन के नेताओं ने आरोप लगाया कि धनखड़ पूरी तरह से सरकार के पक्ष में काम कर रहे हैं और विपक्ष के विचारों को नजरअंदाज कर रहे हैं. उनका कहना है कि धनखड़ ने राज्यसभा की कार्यवाही में हमेशा पक्षपाती रवैया अपनाया है और विपक्षी नेताओं की आवाज दबाई है.
विपक्ष का आरोप
विपक्ष का यह आरोप है कि धनखड़ ने राज्यसभा में विपक्षी सांसदों को बोलने का अवसर नहीं दिया और जब भी उन्होंने बोलने की कोशिश की, तो उन्हें बीच में टोक दिया गया. इसके अलावा, उन्होंने विपक्ष के नेताओं के खिलाफ सार्वजनिक टिप्पणियां कीं और सरकार के खिलाफ सवाल उठाने वालों को अनुशासनहीनता के लिए आलोचना की. विपक्ष ने यह भी दावा किया कि धनखड़ ने एक बयान में कहा था कि वह RSS के एकलव्य बने थे, जो उनके पद की निष्पक्षता के खिलाफ है.
विपक्षी नेताओं ने कहा कि उनका यह कदम लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा के लिए था, क्योंकि उनके अनुसार, धनखड़ ने अपने पद का उपयोग सरकार के पक्ष में किया और राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में निष्पक्षता की भूमिका को कम कर दिया.
सोनिया-खड़गे ने प्रस्ताव पर नहीं किया साइन
विपक्ष के इस प्रस्ताव पर सोनिया गांधी और सदन में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने हस्ताक्षर नहीं किया है. इसी को लेकर बड़ा सवाल पैदा हुआ है. क्या इंडिया गठबंधन इस प्रस्ताव को लेकर गंभीर है. उसे भी पता है कि इस प्रस्ताव का क्या भविष्य है. इसी शर्मिंदगी से बचने के लिए सोनिया गांधी ने हस्ताक्षर नहीं किया. अब सवाल यह है कि यदि वे गंभीर नहीं हैं तो यह नाटक क्यों कर रहे हैं.
इंडिया गठबंधन के पास केवल 85 सदस्य हैं जबकि प्रस्ताव को पारित कराने के लिए 116 सदस्यों का समर्थन चाहिए. हालांकि विपक्षी दलों के नेताओं ने यह भी कहा कि यह कदम उनके लिए व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि यह सरकार के खिलाफ विचार व्यक्त करने का अधिकार है, जिसे राज्यसभा में दबाया जा रहा है. वे इसे लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक जरूरी कदम मानते हैं, जो संसद की कार्यवाही में निष्पक्षता और समानता की जरूरत को रेखांकित करता है.
इस प्रस्ताव पर आगे क्या होगा, यह भविष्य में देखा जाएगा, क्योंकि विपक्ष को इस प्रस्ताव को पारित कराने के लिए आवश्यक संख्या नहीं मिल सकती. फिर भी, उनका यह कदम सरकार और राज्यसभा के अध्यक्ष के खिलाफ अपनी असहमति और आलोचना को सार्वजनिक रूप से प्रकट करने का एक तरीका है.