*हमारे* देश में सड़कें अक्सर दुर्घटनाओं का अखाड़ा बन चुकी हैं। अखबारों में हर रोज सड़क पर लोगों के जख्मी या मौत होने की सूचनाएं मिलती हैं। छत्तीसगढ़ भी इस विडंबना से अछूता नहीं है। राज्य की सड़कों पर चलने वाले हर व्यक्ति के दिल में यह डर समाया हुआ है कि अगला हादसा कहीं उसके साथ न हो जाए। चाहे वह दोपहिया वाहन चलाने वाला युवा हो या पैदल चलने वाला बुजुर्ग, हर किसी को अपनी जान हथेली पर रखकर सफर करना पड़ता है। लेकिन जिम्मेदार कौन, इसकी एक लंबी फेहरिस्त है।
छत्तीसगढ़ के गांव-शहर में सड़कों की हालत दयनीय है। जहां सड़कों की स्थिति थोड़ी ठीक है, वहां सुरक्षा के न्यूनतम मानक भी पूरे नहीं हैं। सड़क किनारे से संकेतक नदारद हैं। स्पीड ब्रेकर बिना रंगे हैं। राजधानी रायपुर समेत लगभग सभी शहरों में ट्रैफिक व्यवस्था का हाल बेहाल है। ट्रैफिक पुलिस का काम अक्सर सिर्फ चालान काटने तक सीमित रह गया है।
हाल ही में *छत्तीसगढ़ के कैबिनेट मंत्री रामविचार नेताम और लक्ष्मी राजवाड़े के साथ हुई दुर्घटना ने इन तमाम खामियों को फिर से उजागर कर दिया।* मंत्री का काफिला, जिसे सबसे सुरक्षित माना जाता है। मंत्री नेता की कार को एक मालवाहक वाहन ने टक्कर मार दी। सोचने वाली बात है कि जब राज्य के मंत्री का वाहन सुरक्षित नहीं है, तो आम जनता की स्थिति क्या होगी। यह केवल एक हादसा नहीं है, बल्कि प्रशासन और सुरक्षा तंत्र पर एक तमाचा है। आखिर कैसे एक भारी वाहन मंत्री के काफिले तक पहुंच गया।
मंत्री राजवाड़े की कार को उनके ही काफिले के वाहन ने दुर्घटनाग्रस्त कर दिया। मंत्री के सुरक्षा प्रोटोकॉल को अनदेखा कैसे कर दिया गया। हालांकि, यह सब कहना जितना आसान है, करना उतना ही मुश्किल। हमारे देश में योजनाएं बनती तो हैं, लेकिन अक्सर कागजों में ही सिमट जाती हैं। मंत्री जी की घटना के बाद अब प्रशासन हरकत में आएगा। कुछ बैठकों का आयोजन होगा और शायद कुछ घोषणाएं भी होंगी। देखना होगा कि इन बैठकों और घोषणाओं से सड़कों पर जान गंवाने का भय रखने वालों को क्या राहत मिलेगी।
सरकार, पुलिस और परिवहन विभाग एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं, लेकिन असली जिम्मेदार कौन है। अक्सर बिना किसी जांच-पड़ताल के लाइसेंस बांट दिए जाते हैं। क्या वह व्यक्ति वाहन चलाने के काबिल है या नहीं, इसका ध्यान ही नहीं रखा जाता। चालान काटकर अपनी जिम्मेदारी पूरी मान वाली पुलिस ने यह नहीं सोचा है कि लापरवाह चालकों का होना कितना बड़ा खतरा है। यह कहना भी गलत होगा कि गलती सिर्फ सरकार और प्रशासन की है। नागरिकों को भी अपने कर्तव्यों को समझना होगा। हेलमेट, सीट बेल्ट और गति सीमा जैसे नियमों बात लोग अक्सर नजरअंदाज करते हैं। घूस देकर लाइसेंस लेना, ट्रैफिक सिग्नल तोड़ना और गाड़ी चलाते समय फोन का इस्तेमाल करना, ये सब हमारी लापरवाही को दर्शाते हैं।
सड़क हादसों की समस्या कोई नई नहीं है, लेकिन इसका हल ढूंढना आज भी हमारी प्राथमिकता नहीं है। अगर समय रहते हम जाग गए और सड़क सुरक्षा को गंभीरता से लिया, तो न केवल मंत्री बल्कि आम जनता भी सुरक्षित रह सकेगी। यह केवल सरकार या प्रशासन का काम नहीं है। हमें भी अपनी आदतों और व्यवहार में बदलाव लाना होगा। याद रखें, सड़कें केवल गाड़ियों के लिए नहीं, बल्कि जीवन के लिए भी हैं।