ज़िंदगीनामा: रोटी, कपड़ा और मकान। ये सिर्फ शब्द नहीं, हमारे जीवन की बुनियादी जरूरतें हैं। हर इंसान का सपना होता है कि उसके पास एक छत हो, पेट भरने को भोजन हो, और तन ढकने को कपड़ा। सरकारें भी जनता की इन्हीं जरूरतों को ध्यान में रखकर योजनाएं बनाती हैं। लेकिन आज के दौर में इन जरूरतों को पूरा करने का तरीका बदल गया है। मेहनत और स्वाभिमान की जगह मुफ्त की उम्मीदों ने ले ली है। हम मदद के नाम पर अपनी कमर ही नहीं, बल्कि हौसला भी तोड़ रहे हैं।
सरकार ने रोटी का इंतजाम तो ऐसा कर दिया है कि अब किसी को भूखे सोने की नौबत नहीं आती। मुफ्त अनाज की योजनाओं ने यह सुनिश्चित कर दिया कि अब पेट भरने के लिए काम करने की भी जरूरत नहीं। पहले घर में चूल्हा जलाने के लिए मेहनत करनी पड़ती थी, लेकिन अब तो हर हाथ में एक थैला होता है, जिसमें राशन भरने का इंतजार रहता है। कपड़े की बात करें तो स्कूली बच्चों के लिए मुफ्त यूनिफॉर्म आ ही रहे हैं। हर साल नया जोड़ा मिलता है। अब माता-पिता के पास बच्चों के कपड़े खरीदने की चिंता नहीं बची।
और मकान। अरे भैया, सरकार है न। प्रधानमंत्री आवास योजना है, मोर जमीन मोर मकान है, बस आवेदन कर दीजिए और सरकार मकान बना देगी। लेकिन हां, अब नियमों की पेचीदगियां इतनी हैं कि पात्र भी अपात्र बनते जा रहे हैं। मीडिया की सूचना से पता चला है कि अब पीएम आवास योजना के लिए जाति प्रमाण पत्र जरूरी है। आप सौ साल से शहर में रह रहे हों। आपके पास जाति का कागज नहीं है, तो मकान का सपना पूरा नहीं होगा। क्या विडंबना है, झोपड़ी में रह रहे लोग तो मकान के लिए तरसते हैं, और जिनके पास पहले से पक्के मकान हैं, वे इस योजना का फायदा ले चुके हैं।
सोचिए, जो हाथ काम करने के लिए बने थे, वे अब सिर्फ राशन के थैलों को थामने के लिए रह गए हैं। जिन पैरों को दौड़ना चाहिए था, वे अब अनुदान की लाइन में खड़े रहते हैं। मदद बुरी नहीं है। लेकिन वह आपको मजबूत बनाए, कमजोर नहीं। मुफ्त योजनाओं के बजाय हमें अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए। सरकार का काम है रास्ता दिखाना, लेकिन उस रास्ते पर चलना हमारा काम है। याद रखिए, स्वाभिमान आपको सिर ऊंचा कर चलने का हौसला देता है। आज जरूरत इस बात की है कि हम अपने भीतर यह भावना जगाएं कि जो कुछ भी मिलेगा, वह हमारी मेहनत का फल हो। स्वाभिमान और कर्म की यह राह न सिर्फ हमें, बल्कि हमारे बच्चों और आने वाली पीढ़ियों को भी आत्मनिर्भर बनाएगी।