भारत में जानिए नरबलि का इतिहास, Know the history of human sacrifice in India

भारत में जानिए नरबलि का इतिहास

यह सुर्खियां इस बात का सबूत हैं कि वर्ष 1828 से 1833 तक बंगाल के गवर्नर जनरल और उसके बाद दो साल देश के गर्वनर रहे विलियम बेंटिक ने भले काली पूजा के मौके पर दी जाने वाली नरबलि की कुप्रथा का अंत कर दिया हो, उसके करीब दो सदियों बाद यानी देश की आजादी के 76 साल बाद भी कई इलाकों में नरबलि की कुप्रथा जस की तस है. यह हालत तब है जब देश के आठ राज्यों में अंधविश्वास और जादू-टोने से संबंधित मामलों से निपटने के लिए कानून बनाए गए हैं.

ऐसे मिलते हैं उदाहरण

बीते साल असम की राजधानी गुवाहाटी से सामने आया था कि यहां एक महिला की बलि चढ़ाने के आरोप में पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया था. यह गिरफ्तारी उस घटना के करीब चार साल बाद की गई है. “वर्षों तक दर्जनों लोगों से चली पूछताछ के बाद यह मामला सामने आया था. जिस महिला की हत्या की गई वह पश्चिम बंगाल के हुगली जिले की रहने वाली थी.” 18 जून की रात को भूतनाथ में एक कपाली पूजा आयोजित की गई थी, जिसमें लगभग 12 लोगों ने भाग लिया था, जिसमें पीड़िता भी शामिल थी. पूजा करने वाले लोगों ने शराब का सेवन किया था. पीड़िता को भी शराब पिलाई गई. इसके बाद उन्होंने कामाख्या के श्मशान घाट का दौरा किया और वहां दूसरी पूजा की. पुरुषों का समूह तब कामाख्या में जय दुर्गा मंदिर गया और मानव बलि के नाम पर पीड़िता का सिर काट दिया.

अब तक सामने आए नरबलि के कई मामले

असम में इससे पहले भी कथित नरबलि के मामले सामने आते रहे हैं. वर्ष 2021 में राज्य के आदिवासी बहुल चाय बागान इलाके में एक तांत्रिक ने चार साल के एक शिशु की कथित रूप से बलि चढ़ा दी थी. इसमें उस बच्चे के पिता की भी मिलीभगत थी. इसी तरह करीब तीन साल पहले  बराक घाटी में 55 साल के एक व्यक्ति की कथित रूप से बलि चढ़ाने के मामले में पुलिस ने तीन महिलाओं समेत 11 लोगों को गिरफ्तार किया था.

साल 2022 अक्तूबर में दिल्ली पुलिस ने दो व्यक्तियों को छह साल के एक बच्चे की बलि देने के आरोप में गिरफ्तार किया था. यह दोनों मजदूरी करते थे. उन्होंने पुलिस को बताया था कि धन कमाने के मकसद से अफीम के नशे में उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बच्चे की हत्या कर दी थी.

सिर्फ कानून बनाने से क्या होगा

सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर महज कानून बना देने से यह कुप्रथा खत्म हो जाती तो देश के जिन आठ राज्यों- बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडीशा ,असम, राजस्थान, महाराष्ट्र और कर्नाटक में यह कब की खत्म हो चुकी होती. बिहार देश का पहला राज्य है जिसने वर्ष 1999 में महिलाओं को डायन घोषित किए जाने और उनको प्रताड़ित किए जाने के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ विच (डायन) प्रैक्टिस कानून, 1999 बनाया था.

झारखंड में भी ऐसा ही एक कानून मौजूद है. पूर्वोत्तर राज्य असम में भी वर्ष 2015 से ही विच हंटिंग (प्रोहिबिशन, प्रिवेंशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट लागू है. बावजूद इसके इन राज्यों से ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं.

कानून नहीं, सामाजिक जागरूकता से खत्म होगी डायन प्रथा

केरल में बीते साल अक्तूबर में दो महिलाओं की कथित बलि के मामले के सामने आने के बाद राज्य सरकार की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था कि रूह कंपा देने वाली ऐसी घटनाओं को सिर्फ कानून से नहीं रोका जा सकता है, इसके लिए समाज में इसके प्रति जागरूकता लाना जरूरी है.

समाजशास्त्री प्रोफेसर धीरेन कुमार गांगुली कहते हैं, “महज कानूनों से ही अगर अपराध खत्म हो जाता तो देश इस समय अपराध-मुक्त होता. लेकिन आजादी के इतने लंबे अरसे बाद भी अगर विभिन्न खासकर पिछड़े इलाकों में नरबलि या शिशु बलि जैसी कुप्रथा जारी है तो इसकी जड़ें मानसिकता, पिछड़ेपन और अशिक्षा में छिपी हैं. खासकर आदिवासी-बहुल पिछड़े इलाकों में पारंपरिक चिकित्सा की जगह लोग ओझा-सोखा या झोला छाप चिकित्सकों पर ही ज्यादा भरोसा करते हैं. उनके बहकावे में आकर लोग निर्दोष इंसान की हत्या जैसा जघन्य अपराध करने को भी तैयार हो जाते हैं.”

 

ये भी पढ़ें...

Edit Template